Sunday 10 June 2012

चाँद से बेखबर उसकी, चांदनी से मिल आया हू

लिपट गई थी चांदनी मुझसे, भूल कर बात सब
इसीलिए तो छाई थी, देखो अँधेरी रात तब
नासमझ चांदनी की तुम्हे, दास्तान सुनाने आया हू
चाँद से बेखबर उसकी, चांदनी से मिल आया हू

कह गई वह बात मुझसे, जिसका कोई मतलब न था
बेवफा चाँद भी है, इसका मुझे तलब न था
चाँद का अँधेरी से रिश्ता, उसको समझाने आया हू
चाँद से बेखबर उसकी, चांदनी से मिल आया हू

तुम्हारे ही खातिर चाँद, अँधेरी से मिलने जाता है
तुम्हे बेहतर बनाने मे, वह पन्द्रह दिवस लगाता है
तुम ही हो मोहब्बत चाँद की, यह बतलाने आया हू
चाँद से बेखबर उसकी, चांदनी से मिल आया हू

मेरी बातो का असर, चांदनी पर नजर आया है
इसीलिए तो देखो फिर, चाँद निखर आया है
भूल गम अपने मै, चांदनी मे रंगजाने आया हू
चाँद से बेखबर उसकी, चांदनी से मिल आया हू

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